रियाज़

  • सुनने का संदर्भ

    अंकुर के ज़रिये दिल्ली लिसनिंग ग्रुप के कई साथी लर्निंग कलेक्टिव्ज़, क्लबों और स्कूल समूहों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि समूह और स्व-शिक्षा के संदर्भ रचने के लिए अंकुर के सुनने पर आधारित रियाज़ को आगे बढ़ा सकें। स्कूली सीख-सिखाव को रोजमर्रा के अनुभवों से जोड़ने के लिए हम व्यक्तिगत और संवादिक…

  • चलता-फिरता ढांचा

    हम आवाज़ों को सुनने और शहर के बारे में साझा सुनने और खुले संवाद के लिए मौजूदा ढाँचा और विविध मीडिया फार्म का सहारा लेते हैं। सार्वजनिक ढांचों और प्रयासों के बारे में हमारा तरीका किसी खास जगह के मौजूदा नेटवर्क, लय-ताल और सामाजिक ताने-बाने की विस्तृत समझ पर आधारित है। हम मौजूदा ढांचों और रूपों…

  • सुनने को लिखना

    सुनने और आवाज के ‘बारे में’ महज लिखने की बजाय ये सवाल लगातार हमारी दिलचस्पी का सबब रहा है कि सुनने का रियाज करते हुए कैसे लिखा जाता है। हमारी समझ में सुनने की शारीरिक क्रिया और अपना ध्यान व्यवस्थित करना आवाजों को विन्यस्त करने के सिलसिले का पहला मुकाम होता है। लिहाजा, हम शहर…

  • साझा सुनना

    साथ-साथ सुनना हमारे सारे रियाज़ों की बुनियाद है।  हम शहर को सुनते हैं, लोगों को सुनते हैं, जगहों को सुनते हैं, और तो और एक-दूसरे को भी उतने ही ग़ौर से सुनते हैं। दिल्ली लिसनिंग ग्रुप की महफ़िलों में हम सबको एक ऐसी साझा जगह मिलती है, जहाँ हमारे विचारों, सिलसिलों, लिखे-पढ़े पाठों को गहराई से सुना…